लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं औरत का कोई देश नहींतसलीमा नसरीन
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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...
औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं 'प्यार'
जिस समाज में मर्द, औरत का कर्ता हो, औरत का प्रभु हो, औरत का नियन्त्रक हो, औरत का नियन्ता हो, उस समाज में औरत के साथ, मर्द का और कोई वास्ता भले हो, प्रेम नहीं हो सकता। मक्खन-छेना खाकर बड़े होने वाले मर्द, जूठन खाकर बड़ी होने वाली औरत से हद से हद छेडछाड कर सकते हैं, प्यार नहीं कर सकते। औरत के प्रति मर्द की करुणा और मर्द के प्रति औरत की श्रद्धा को यह समाज 'प्रेम' नाम देता है। यह प्रेम मन और तन, दोनों ही तथाकथित योग्य या अयोग्य पात्र में उँडेल देता है। नारी के मन को ले कर पुरुष जो करता है वह बहुत लोग जानते हैं। लेकिन तन को ले कर क्या करता है? चूँकि पुरुष के मन में नारी के प्रति कोई श्रद्धा नहीं होती, इसलिए उसके शरीर के प्रति भी कोई श्रद्धा नहीं होती। पुरुष के लिए नारी-शरीर पाना, बाघ के पंजे में हिरन पाने जैसा है। हिरन के प्रति बाघ के मन में कोई श्रद्धा-बोध नहीं होता। उसे चीरकर हड़प जाने में कोई ग्लानि भी नहीं होती। जब भूख लगी, शिकार किया और खा-चबा लिया। खा-पी कर डकारें लेते हुए, वह अपने अहाते में लौट जाता है। जब दोबारा भूख लगती है वह दुबारा किसी नये हिरन पर टूट पड़ता है। हिरन न मिला तो भैंस या इन्सान ही सही।
नमकीन चक्की का कट्टा काटने की तरह औरत के होठ काटने को पुरुषों ने नाम दिया-चुम्बन! जिस औरत को इसी किस्म के चुम्बन का तजुर्बा हो वह तो इसी को चुम्बन समझती है। उसके लिए चुम्बन का अर्थ है-तीखे दाँतों द्वारा काटना, होठ फूल जाना, छिल जाना, खून छलक आना। होठ काटने के बाद पुरुष औरतों के स्तनों के पीछे पड़ जाते हैं। उसे मसल-पीसकर, तबाह कर डालते हैं। बार-बार दबोच लेते हैं, नाखूनों से बकोटते हैं, दाँतों से काटते हैं। पुरुष अगर औरत को प्यार करता तो वह औरत के जिस्म को भी प्यार कर पाता। अगर प्यार करता तो उसकी उँगलियाँ नरम-कोमल होती, दाँत-नाखन वह छिपाये रहता। असल में पुरुष अपनी खुशी, अपने आनन्द के अलावा और कुछ भी नहीं समझता। औरत को क्या अच्छा लगेगा क्या नहीं लगेगा, उन लोगों ने यह जानने की कोशिश कभी नहीं की। अगर जान भी लिया तो उसे अहमियत नहीं दी। औरत के सुख-दुख की परवाह पुरुष ने नहीं की।
ज़्यादातर औरतें नहीं जानतीं कि वे ऐसा क्या करें कि पुरुषों को भला लगे, क्या करें, जो उन लोगों की देह को सुख मिले। पुरुष, औरत को जिस तरीके से, जो भी समझता है, औरत वही समझती है। उसमें क्या अलग से अपना दिल-दिमाग लगाकर, अलग से कुछ समझने की क्षमता है? नहीं है! शरीर के मामले में पुरुष 'दि मास्टर मैगालोमैनियाक मैची' है और नारी-क्रोइनक है। पुरुष सुपीरियर है और नारी इन्फीरियर! पुरुष एक्टिव है, नारी पैसिव! नारी अगर पैसिव न हो तो पुरुष को मुश्किल होती है, जैसे हिरण अगर हिले-डुले तो बाघ को मुश्किल होती है।
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- कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
- जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
- औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
- औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
- दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
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- पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
- इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
- नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
- लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
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